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जहर मुक्त जैविक खेती में भूमि उपचार के लिए आवश्यक बायों कल्चर व बैक्टीरिया !!

जहर मुक्त जैविक खेती में भूमि उपचार के लिए कम से कम प्रति एकड़ निम्न बायों कल्चर व बैक्टीरिया की आवश्यकता पड़ेगी।
  1. फंगस का नियंत्रण
    यह दोनों उत्पाद जमीन में फंगस का नियंत्रण करेंगे। चाहो तो दोनों की दो 2 किलोग्राम(लीटर) मात्रा ले सकते हो या फिर दोनों की संपूर्ण मात्रा ले सकते हैं।
    • ट्राइकोडरमा विरडी 4 किलो(लीटर)
    • स्यूडोमोनास फलोरिसेंस 4 किलो(लीटर)

  2. नाइट्रोजन फास्फोरस और पोटाश के लिए।
    NPK कंर्सोटिया 4किलो(लीटर) उपयोग करना है।

  3. जड़ों की अच्छी बढ़वार व सूक्ष्म पोषक तत्वों के अवशोषण के लिए
    माइकोराईजा 4किलो(लीटर) उपयोग करना है।

  4. दीमक व सफेद लट की समस्या
    अगर जमीन में दीमक व सफेद लट की समस्या है तो या तो दोनों उत्पाद या फिर दोनों में से 2-2
    • मेटाराईजियम एनीसोफेली 4किलो(लीटर)
    • बवेरिया बेसीयाना 4किलो(लीटर) का उपयोग करें।

  5. जमीन में निमेटोड/जड़गाठ की समस्या
    जमीन में निमेटोड/जड़गाठ की समस्या है तो इनमें से कोई भी एक 4किलो(लीटर) उपयोग करना है।
    • पेसीलीयोमाइसेस लिनासुनस
    • वर्टीसीलीयम क्लाईडोस्पोरियम
    • पोकाइनीया क्लेमाईडोस्पोरीयम
ऊपर दिए गए सभी उत्पाद बायो कल्चर (बायोलॉजीकल) की मात्रा प्रति एकड़ के आधार पर है।

पौधे के लिए आवश्यक पोषक तत्व व उनके कार्य

सभी किसान इसे पूरी तरह याद कर लीजिए  खेती के पूर्ण ज्ञान के लिए बहुत आवश्यक है
पौधे को अपना जीवन चक्र पूरा करने के लिए 40% कार्बन, 6% हाइड्रोजन, 44% आक्सीजन की यानि ये 3 तत्व ही 40+06+44=90% आवश्यकता होती है और हम सिर्फ 10% को ही ज्यादा महत्वपूर्ण मानकर सबकुछ गङबङ कर बैठे हैं ।
मिट्टी में कार्बन की मात्रा 2% होनी चाहिए। जो घटकर 0.02 से 0.03 ही रह गई है। इसी असंतुलन की वजह से ज्यादा खाद और दवाओं की खपत बढाने पर किसान मजबूर हो गये हैं।
पौधे के लिए आवश्यक पोषक तत्व व उनके कार्य: – पौधे को 16 तत्वों की आवश्यकता होती है,
मुख्यघटक
कार्बन (C), हाइड्रोजन (H) और ऑक्सीजन (O)

मुख्य पोषक तत्व
1 नाइट्रोजन (N): –
– प्रोमोशनल विकास
– यह एमिनो एसिड, प्रोटीन और एंजाइमों के गठन में मदद करता है।
– क्राइसेंथेमम के उत्पादन के लिए

2 फॉस्फोरस (P): –
– जड़ों, शाखाओं और फूलों के विकास के लिए
– एटीपी के प्रारूप में
– ट्रंक के मजबूत विकास के लिए
– प्रकाश संवेदना में महत्वपूर्ण भूमिका

3 पोटाश (K): –
– फल के विकास के लिए
– फल की गुणवत्ता के लिए
– प्रतिरक्षा में वृद्धि
– धुरी को विनियमित करना
– नाइट्रोजन की वापसी में वृद्धि

भूमि सुधारक ( सेकंडरी तत्व )

1. कैल्शियम (Ca) –

– सेल की संरचना में
– सेल विभाजन द्वारा पैन-फलों के विकास के लिए
– शुरुआती जड़ों के तेजी से विकास के लिए

2. मैग्नीशियम (Mg): –

– क्राइसेंथेमम की संरचना के लिए
– पौधे के हरे रंग के (रंग) के लिए
– फॉस्फेट चयापचय में भी मदद करता है

3. सल्फर (S): –
– एमिनो एसिड के उत्पादन के लिए
– क्राइसेंथेमम के उत्पादन के लिए
– तेल का प्रतिशत बढ़ाने के लिए
– प्रतिरक्षा प्रणाली बढ़ाएं

4. जिंक (Zn): –
– ऑक्सीक्स एंड: इमल्शन बनाता है और पौधे के अग्रणी को विकसित करता है
फूलों और फलों के विकास के लिए
– डीएनए की संरचना में एक महत्वपूर्ण भूमिका है
जस्ता के बिना अधिक उत्पाद संभव नहीं है
– फॉस्फोरस और नाइट्रोजन निकासी बढ़ाता है

5. बोरॉन (B)-
– सेल विभाजन और विकास के लिए
– प्रत्यारोपण ग्लूकोज की ओर जाता है
– फूलों के फुलब्रेशन को बढ़ाता है
– फल के विकास के लिए
– बोरॉन पत्तियां कैल्शियम परिवहन में वृद्धि करती हैं।

6 कॉपर (Cu) –
– प्रकाश संश्लेषण में बहुत उपयोगी है
– कार्बन समेकन में सहायक
– मिट्टी कवक के खिलाफ सुरक्षा करता है

7 आयरन (Fe) –
क्लोरीन के उत्पादन के लिए सहायक
– वर्णक के उत्पादन के लिए
– एंजाइमों की तैयारी के लिए
– विटामिन ए और प्रोटीन के उत्पादन के लिए

8 मैंगनीज (Mn)-
– क्राइसेंथेमम के उत्पादन के लिए
– नाइट्रोजन के चयापचय के लिए
– बीज की शक्ति बढ़ाएं।
– फल फॉस्फोरस और कैल्शियम की उपस्थिति में परिपक्व बनाता है

9 मोलिब्डेनम (Mo) –
– एंजाइमेटिक प्रक्रिया को बढ़ाता है
– एमिनो एसिड बनाये जाते हैं
– rhizobium द्वारा नाइट्रोजन स्थापित करता है

10 निकिल (Ni): –
– एंजाइम प्रक्रिया प्रगतिशील बनाते हैं
नाइट्रोजन बनाने में मददगार
– यूरिया एंजाइम प्रक्रिया को बढ़ाता है

11 क्लोराइड (Cl)-
– प्रकाश संश्लेषण के लिए आवश्यक ह

क्या आप जानते है पौधो को नाईट्रोजन कैसे मिलती है?

दिल से ़़़़़
क्या आप जानते है पौधो को नाईट्रोजन कैसे मिलती है?

यह तो हम जानते है कि पत्तों को प्रोटीन की निर्मिति हेतु ऩाईट्रोजन की आवशयकता होती है। पत्तों के इर्द गिर्द हवा में 78.6 प्रतिशत नाईट्रोजन होती है । हवा में नाईट्रोजन का महासागर है किन्तु ईश्वर ने पत्तो को हवा से नाईट्रोजन लेने की छमता नहीं दी है। ईश्वर ने यह छमता एक सुक्छम जीवाणु को दी है जिसको हम नाईट्रोजन उपलब्ध करवाने वाला जीवाणु (Nitrogen fixing bacteria) कहते है। जिसका हमने संक्छिप्त नाम नत्राणु रखा है ।
ये नत्राणु दो प्रकार के होते है:-
1. सहजीवी ( Symboitic)
2. असहजीवी ( Non Symboitic)

1.सहजीवी नत्राणु भी तीन प्रकार के होते है:-
क. रायझोबियम नत्राणु ( Rhyzobium)
ख. माइकोराजा फफूंद
ग. नील हरित शैवाल
ये सहजीवी नत्राणु फलीवर्गीय द्वि दलीय फसलों के पेड़ पौधो की जड़ो पर जो गाठें होती है, उनमें निवास करते है । इसमें सारे दलहन आते है जिनकी संख्या 568 है। इन गांठों में रायझोबियम सहजीवी नत्राणु निवास करते है । जब पत्तों में प्रोटीन निर्मिति के लिये नाईट्रोजन की आवशयकता होती है तो जड़ें गांठों में निवासी रायझोबियम के माध्यम से हवा से नाईट्रोजन लेती है तथा इसके बदले में जड़े रायझोबियम जीवाणुओं को शर्करा देती है।इसे सहजीवन कहते है, इसका मतलब है अगर हवा से नाईट्रोजन लेना है और जड़ो को उपलब्ध करना है तो हमें दलहन की अन्तर फसल लेनी होगी।

2. असहजीवी नत्राणु
ऑझोटोबॉक्टर ( Azotobacter), ऑझोस्पीरीलम ( Azospirrilium), बायजेरींकिया ( Biejerinkia), फ्रेन्किया ( Frankia), सुडोमोनास( Pseudomonas) आदि कुल 136 प्रकार के असहजीवी नत्राणु है ।
ये जीवाणु जड़ो के पास तो बैठे रहते है किन्तु जड़े के ऊपर नहीं। ईश्वर ने इन्हे कार्य सौंपा है कि हवा से नाईट्रोजन लेकर जड़ें को दो लेकिन जड़ो से कुछ मत मांगो। जड़ो द्वारा नाईट्रोजन मांगने पर ये हवा से नाईट्रोजन तो लेते है किन्तु जड़े के हाथ में न देकर उसके सामने पटक देते है इसी लिये इन्हे असहजीवी नत्राणु कहते है ।
असहजीवी नत्राणु एक दलीय पौधे की जड़ो के पास होते है जबकि सहजीवी नत्राणु द्विदलीय पौधों की जड़ो में होते है । अत: यदि दोनों एक साथ है तभी पौधे जड़ो से नाईट्रोजन ले सकते है अन्यथा नहीं।

अत: यदि हमें यूरिया बंद करनी है तो यदि मुख्य फसल एक दलीय है तो अन्तर फसल द्विदलीय लेनी होगी तथा यदि मुख्य फसल द्विदलीय है तो अन्तर फसल एक दलीय लेनी होगी ।

इस पर विस्तार से चर्चा करेंगे हम आगामी कार्यशाला में।

रासायनिक खाद के फायदे और नुकसान क्या है?

रासायनिक खाद के सिर्फ नुकसान ही हैं कोई फायदा नहीं,

रासायनिक खाद असल में जमीन को उत्तेजित करता है जिससे फसलाम में तत्काल फर्क दिखता है, और फसल अपनी जरूरत से ज्यादा पोषक तत्व को जमीन से खींचती है, जिससे जमीन में बनने वाले और कुदरती तोर से बननेवाले तत्व में कमी आती है, साथमे रसायण खाद धीमे जहर की तरह जमीन के पोषक तत्व को बनाने वाले और जमीन को भुरभुरा करने में सहाय करने वाले केंचुए को मार देते हैं जिससे अगली फसल में हमें ज्यादा खाद डालनी होगी और ये एक विष चक्र सुरु हो जाता है, अगर आप मुनाफा लेने के चक्र में रासायनिक खाद दलेगे तो दूसरी फसल में पहले से ज्यादा खाद डालनी पड़ेगी सुरखर्च हमेशा बढ़ता जाएगा,

मेरा तो एक ही निवेदन है कि कोई भी किसान अगर खेती करता है तो वह काम से काम १-२ गाय पाले और उसके साथ खेती करे।।।

जैविक खेती जमीन और जीवन दोनों की जरूरत

खेती महंगी हो गयी है। कृषि उपकरण, बीज, खाद, पानी और मजदूर सब महंगे हो गये हैं। सरकार लाख दावा कर ले, रिजर्व बैंक की रिपोर्ट यह सच सामने लाती है कि आज भी पांच में से दो किसान बैंकों की बजाय महाजनों से कर्ज लेकर खेती करने को मजबूर हैं, जिसकी ब्याज दर ज्यादा होती है। दूसरी ओर किसान हों या सरकार, सबका जोर कृषि उत्पादन की दर को बढ़ाने पर है। ज्यादा उत्पादन होने पर कृषि उपज की कीमत बाजार में गिरती है। तीसरी ओर अधिक उत्पादन के लिए हाइब्रिड बीज और रासायनिक खाद व कीटनाशक के इस्तेमाल से फलों और सब्जियों में सड़न जल्दी आ रही है। किसान उन्हें ज्यादा समय तक रख नहीं सकते। इन सब का नुकसान किसानों को उठाना होता है। हर साल यह स्थिति बनती है कि बाजार में सब्जियों की कीमत में भारी गिरावट और सड़न की दर में वृद्धि के कारण किसान उन्हें खेतों में ही नष्ट कर देते हैं। सच यह भी है कि जमीन सीमित है। अन्न की मांग जन संख्या के अनुसार बढ़ रही है। इस मांग को न्यूनतम जमीन में अधिकतम पैदावार से ही पूरा किया जा सकता है। ऐसे में सस्ती और टिकाऊ खेती ही अंतिम विकल्प है। जब लागत कम होगी, तब कृषि विशेषज्ञ देशज ज्ञान के आधार पर परंपरागत खाद के इस्तेमाल और जैविक खेती का भरपूर अनुभव रखते आये हैं। भड्डरी और घाघ ने भी खाद के इस्तेमाल को लेकर अनेक कहावतें कही हैं। उनमें भी ज्यादा उत्पादन पाने की विधि निहित है, लेकिन द्वितीय विश्वयुद्ध के बाद रासायनिक खाद ने हमारे खेतों की उर्वरा शक्ति को कई गुना बढ़ा देने के सपनों के साथ परंपरागत खाद के इस्तेमाल हो गयी। किसानों की निर्भरता बढ़ गयी। मिट्टी की उर्वरा शक्ति खत्म हो गयी। जैव विविधता और पर्यावरण को भारी नुकसान हुआ। उस स्थिति से निबटने का रास्ता भारत के ही नहीं, पूरी दुनिया के किसान तलाश रहे हैं। हम द्वितीय हरित क्रांति के इस दौर में सस्ती, टिकाऊ, पर्यावरण और मानव स्वास्थ्य के लिए अनुकूल तथा अधिक उत्पादन लक्ष्य को प्राप्त कर सकने वाली विधि से खेती कर कैसे इस स्थिति का मुकाबला कर सकते हैं।

सस्ती खेती के लिए जैविक खेती अपनाएं। यह रासायनिक खेती के मुकाबले कम खर्चीली, टिकाऊ और स्वस्थ है। इसमें रासायनिक खाद, रासायनिक कीटनाशक और रासायनिक खरपतवारनाशी दवाओं के स्थान पर जैविक खाद और जैविक कीटनाशकों का इस्तेमाल किया जाता है। इन परंपरागत साधनों और विधियों में भी कृषि वैज्ञानिकों ने कई नये आयाम जोड़े हैं। इसलिए इनके इस्तेमाल से भी हम भरपूर खेती का लाभ ले सकते हैं। इससे भी अधिक पैदावार प्राप्त किया जा सकता है। इसमें खाद के रूप में आप गोबर खाद, मटका खाद, हरी खाद, केंचुआ खाद, नाडेप खाद आदि का इस्तेमाल करें। ये खाद आपके खेतों की मिट्टी की उर्वरा शक्ति को बढ़ाती हैं और जैव विविधता को बचाती है। ये रासायनिक खाद के मुकाबले सस्ती हैं। इन्हें आप अपने ही खेतों में तैयार भी कर सकते हैं। इसलिए आप अपनी जरूरत के मुताबिक और सही समय पर खाद प्राप्त कर सकते हैं। यह पर्यावरण को नुकसान नहीं पहुंचाती है। खेतों की मिट्टी और पानी को यह जहरीला नहीं बनाती, जैसा कि रासायनिक खाद करती हैं। इसलिए जब आप जैविक खाद का इस्तेमाल करते हैं, तो न केवल इस मौसम के लिए सुरक्षित खेती कर रहे होते हैं, बल्कि भविष्य के लिए भी अपने खेत की मिट्टी, पानी और हवा को भी जहरीला होने से बचाते हैं। 1960 में जब प्रथम हरित क्रांति का दौर चला, तब रासायनिक खाद के अंधाधुंध इस्तेमाल को बढ़ावा दिया गया। नतीजा हुआ कि खेतों की स्वाभाविक उर्वरा शक्ति और जलधारण क्षमता नष्ट होती चली गयी। रासायनिक खाद के इस्तेमाल से जमीन के नीचे का पानी जहरीला हो गया। रासायनिक कीटनाशकों के इस्तेमाल से फसलों में इसके अंश समा गये। हम हर दिन सब्जी, फल और अन्न के रूप में रासायनिक तत्वों को खा रहे हैं। रासायनिक खर-पतवार नाशकों ने भी हमारी मिट्टी, हमारे पानी और हमारी हवा को जहरीला बना दिया। साथ ही उन जीवाणुओं को भी मार दिया, जो जैविक संतुलन के लिए जरूरी हैं। जैविक खेती इस स्थिति से निकलने का कारगर विकल्प है। सरकार और कृषि वैज्ञानिक भी इस सत्य को स्वीकार कर रहे हैं और जैविक खेती को बढ़ावा दे रहे हैं।

 

सिंचाई संकट का भी रास्ता

जैविक खेती सिंचाई संकट से भी निकलने का बड़ा रास्ता देती है और खेती-किसानी को सस्ता बनाती है। जैविक खेती में रासायनिक खेती के मुकाबले सिंचाई जरूरत कम पड़ती है। दूसरी बात कि जैविक खाद से खेतों में जलधारण की क्षमता बढ़ती है। तीसरी बात कि जैविक खेती में खेत के पानी का भाप बन कर उड़ने की प्रक्रिया कम होती है। इससे खेतों में लंबे समय तक नमी बनी रहती है और सिंचाई मद में किसान के खर्च को कम करती है।

 

अच्छी फसल का लाभ

जैविक खेती से उत्पादित फसलों में सड़ने और गलने की दर रासायनिक खाद के मुकाबले मंद होती है। यानी फल हो या सब्जी, जल्दी गलते और सड़ते नहीं हैं। इससे किसानों को अपनी फसल बेचने के लिए ज्यादा समय मिलता है।

जैविक खेती का दीर्घकालीन सकारात्मक प्रभाव भी है। खेती की गुणवत्ता को बनाये रखने में यह कारगर है।

 

रासायनिकी खाद की कहानी

फ्रांस के कृषि वैज्ञानिकों ने पता लगाया कि पौधों के विकास के लिए तीन तत्व नाइट्रोजन, फास्फोरस एवं पोटास जरूरी है। इनसे पौधों का अच्छा विकास एवं अच्छी उपज प्राप्त हो सकती है। र्जमन के वैज्ञानिक लिबिक ने इन तीनों के रासायनिक संगठक की खाद बनायी और खेतों में उसका इस्तेमाल किया। द्वितीय विश्व3 युद्ध (1939-1945) के बाद भारी मात्रा में गोला -बारूद की रासायनिक सामग्रियां बच गयीं। बहुराष्ट्रीय कंपनियों ने इन सामग्रियों से खाद एवं कीटनाशक बनाया और दुनिया भर में इसके इस्तेमाल को लेकर प्रचार अभियान चलाया।

 

कितनी खतरनाक

अमेरिका से युद्ध के दौरान वियतनाम के सैनिक जंगलों में छुप गये थे। उनका पता लगाने के लिए अमेरिका ने अपनी वायुसेना की मदद से एजेंट ओरेंज नामक रसायन का छिडकाव किया। यह रसायन खरपतवार नाशक था। इसने जंगल की हरियाली को नष्ट कर दिया। लगभग एक करोड़ गैलन एजेंट ओरेंज छिड़का किया गया था। नतीजा हुआ कि वियतनाम के लाखों हेक्टेयर जंगल, उसकी हरियाली, जैव विविधता और जीव – जंतु नष्ट हो गये। जो वियतनामी सैनिक और नागरिक इस रसायन के प्रभाव में आये, उनकी हाल तक पैदा होने वाली पीढ़ी विकलांगता की शिकार हैं। आज वही रसायन राउंड अप नाम से खरपतवार नाशक के रूप में भारत के किसानों को बेचा जा रहा है।

 

जैविक खेती : लाभ ही लाभ

जैविक खेती के कई लाभ हैं। इससे खेत और किसान दोनों आत्मनिर्भर होते हैं। यानी अगर आपने जैविक खेती शुरू की है, तो कुछ ही सालों में आपके खेत की उत्पादक क्षमता का स्वाभाविक विकास इतना हो जाता है कि बहुत अधिक पानी और खाद की जरूरत नहीं रह जाती। किसानों की रासायनिक खाद पर निर्भरता घट जाती है। चूंकि किसान खुद खाद तैयार कर सकते हैं, इसलिए उन्हें सरकार और खाद आपूर्तिकर्ताओं की ओर मुंह उठाये नहीं रहना पड़ता है। चूंकि जैविक खेती सस्ती है। इसलिए किसान को कम लागत पर अधिक कृषि उत्पादन का भरपूर अवसर मिलता है।

 

किसानों की दृष्टि से लाभ

जैविक खेती से भूमि की उपजाऊ क्षमता बढ़ती है। कम अंतराल पर सिंचाई नहीं करनी पड़ती है। रासायनिक खाद पर निर्भरता कम हो जाती है। कम लागत में बेहतर उपज।

 

पर्यावरण की दृष्टि से लाभ

जैविक खेती पर्यावरण की मित्र है। यह पर्यावरण और जैव विविधता के लिए अनुकूल है। जैविक खेती से भूमि के जल स्तर में वृद्धि होती है। यह जल और मिट्टी के माध्यम से होने वाले प्रदूषण में कमी लाती है। इसमें खाद बनाने के लिए कचरे का उपयोग होता है। इससे कचरा प्रबंधन भी हमें मदद मिलती है।

परंपरागत खेती करने के फायदे और नुकसान क्या हैं?

परम्परागत खेती के फायदे और नुकसान

पारंपरागत खेती फसलों को विकसित करने के लिए आधुनिक तरीकों का उपयोग करने वाली कृषि है. यह उन वनस्पति एवं भोजन उत्पादन की मुख्य विधि है, जिसे आम तौर पर हम खाते हैं. यह कृषि की विधि सिंथेटिक रासायनिक फ़र्टिलाइज़र्स, रसायन – आधारित प्रजातियों पर आक्रमण के नियंत्रण और जेनेटिकली रूप से संशोधित जीवों के उपयोग पर निर्भर करती है. परंपरागत खेती, उत्पादकों एवं उपभोक्ताओं के लिए इसके लाभ के साथ ही इसकी उपलब्धता एवं मूल्य के कारण सबसे अधिक प्रचलित कृषि विधियों में से एक है. आधुनिक समय में परम्परागत खेती को विभिन्न कारणों से लाभकारी माना जाता है, किन्तु इसके लाभ के साथ – साथ इसके कुछ नुकसान भी हैं. यहाँ इस खेती के फायदे एवं नुकसान दिए जा रहे है –

परंपरागत खेती के फायदे (Conventional Farming Advantages)

यह फसलों की पैदावार को बढ़ाती है :- यह खेती किसानों के लिए उच्च ओवरआल पैदावार को बढ़ाने में मदद करती है, ताकि प्राकृतिक परिस्थितियों में कम फसलें ख़राब हों. फसलों के मैदानों पर लागू करने वाले रसायनों से कीटों को कम करने में, फसलों में अधिक पानी बनाये रखने में बढ़ावा देने में एवं घासों को निकलने में मदद मिलती हैं.

यह फसलों को और अधिक उपयोगी बनाती है :- जेनेटिकली रूप से संशोधित फसलें न केवल ख़राब होने वाली फसलों को बचाने में मदद करती है, बल्कि ये उसे और भी अधिक फलदायी बनाती है. इस खेती के कारण मक्का के दाने को बड़े होने में और गेंहू के क्षेत्र को लोकल फंगस से बचाने में मदद मिलती है. जेनेटिकली रूप से संशोधित खाद्य पदार्थ पोषक तत्वों से भरे होते हैं.

यह किसनों को दुनिया को खाना खिलाने में सक्षम बनाती है :- दुनिया में इतनी अधिक आबादी है कि इसका आंकड़ा सन 2050 में 10 बिलियन तक पहुंच सकता है. सभी जमीन भोजन के उत्पादन के लिए उपयुक्त नहीं होती है. अतः उस समय तक बहुत कम भूमि उपलब्ध होगी, क्योकि लोगों को रहने के लिए घर की आवश्यकता होती है. ऐसे में परंपरागत खेती में पूरी दुनिया को खिलाने लायक भोजन का निर्माण करने की संभावना है, क्योंकि यह विधि भूमि को अधिक प्रोडक्टिव बनाती है.

कम लागत और उच्च लाभ :- इस खेती का उपयोग करने वाले किसानों के अनुसार, इस विधि के लाभों में से एक लाभ इसकी सस्ती लागत है. इस खेती में सिंथेटिक रसायन फ़र्टिलाइज़र और सीवेज स्लज का उपयोग होता है जोकि आर्गेनिक खेती के मुकाबलें बहुत सस्ता होता है. इससे किसान कम लागत में अधिक उत्पादन कर अधिक लाभ कमा सकते हैं. यही इस विधि को आकर्षक बनाता है.

अधिक नौकरी के अवसर :- ऐसा मानाजाता हैं कि परंपरागत खेती, मजदूर वर्ग के लिए रोजगार के अवसर देती है. चूंकि इस खेती में बड़े क्षेत्र में अधिक उत्पादन किया जाता हैं जिससे खेतों में काम करने के लिए अधिक श्रमिकों की आवश्यकता होती हैं. इससे किसानों को नौकरियों के अवसर प्रदान होते हैं. इसमें कई तरह की नौकरियां शामिल होती हैं जैसे डिलीवरी ट्रक मजदूर, खेती करने वाले मजदूर आदि और भी.

खाने का उत्पादन बढ़ता हैं :– चुकी इस खेती में उत्पादन की लागत काफी कम है, इसलिए किसान अधिक फसलों का उत्पादन करने में सक्षम होंगे. और इससे खाद्य सप्लाई की मांग में बढ़ोत्तरी भी होगी.

परंपरागत खेती के नुकसान (Conventional Farming Disadvantages)

यह मनुष्य के स्वास्थ्य एवं मिट्टी को नुकसान पहुंचाती है :- परंपरागत खेती में फसलों का उत्पादन करने के लिए जिन रासायनिक फ़र्टिलाइज़र एवं कीटनाशकों का उपयोग किया जाता है. वे हानिकारक रसायन होते हैं जो सक्षम मिट्टी एवं फसलों पर प्रवेश कर जाते है, जिससे मनुष्यों को स्वास्थ्य सम्बंधित नुकसान तो होता ही हैं, साथ ही मिट्टी भी ख़राब होती है. इसके संबंधित लोगों का कहना है कि इस खेती में उगाई जाने वाली फसलों में 13 प्रकार के रसायन मौजूद होते हैं.

इससे जनवरों एवं पर्यावरण को भी खतरा हैं :- लोगों का कहना है कि इसमें जो रसायन एवं कीटनाशक का उपयोग किया जाता है उससे पर्यावरण को भी नुकसान होता है. खाद्य के उत्पादन में जानवरों का इस्तेमाल किया जाता है. इस खेती में उन पर इसका बुरा प्रभाव पड़ता है, क्योकि ये जानवर बड़े पैमाने पर उत्पादित भोजन खाते है, जोकि उनको संभावित रूप से नुकसान पहुँचा सकता है.

छोटे किसानों को नुकसान है :- पारंपरिक खेती का इस्तेमाल नहीं करने वाले लोगों का कहना है कि यह विधि सस्ती और आकर्षक हैं, जिससे बड़े पैमाने पर खेती की जाती है. इसमें ओद्ध्योगिक एवं पारिवारिक दोनों खेती शामिल होती है. और उद्योग छोटे किसानों पर हावी हो जाते हैं, जिससे यह उनके लिए नुकसानदायक साबित हो सकता है.

कई देशों में पारंपरिक खेती पर प्रतिबन्ध लगा है :- कई देशों में जीएमओ फसलों और परंपरागत खेती पर प्रतिबन्ध लगा दिया गया है, जिससे उत्पाद की क्षमता सीमित हो जाती है.

परंपरागत खेती के कई फायदे हैं, परन्तु इसके कुछ नुकसान इनके लाभों को कम कर देते हैं. लेकिन इसकी कम लागत और अधिक उत्पादन की क्षमता के चलते यह अभी भी कई जगह पर काफी लोकप्रिय है.

खेती से ज्यादा मुनाफा कैसे कमाया जा सकता है ?

‘आम के आम और गुठलियों के दाम’ अर्थात उत्पाद के साथ साथ उसके अवशिष्ट से भी लाभ अर्जित करना | शास्त्रों में कृषि कर्म को संसार की सबसे उत्तम आजीविका कहा गया है | कृषि कर्म में उपज से आय तो होती ही होती है साथ ही इसके अवशिष्ट से भी लाभार्जन किया जा सकता है | कृषोपज का अवशिष्ट गौमाता का भोजन है यदि कृषि हमारी आजीविका है तब हमें गौपालन अवश्य करना चाहिए | गौ माता आय का एक बहुआयामी साधन है इससे हमें अमृत तुल्य गौरस, खेतों की पोषणकारी उर्वरा, ईंधन के रूप जैविक गैस और गौमूत्र के रूप कीटनाशक व् रामबाण औषधि प्राप्त होती हैं | आजकल शुद्धता की अत्यधिक मांग हो चली है लोग इसके मुंहमांगे दाम देने को तैयार हैं हम दुग्ध से दुग्धडेयरी का अतिरिक्त व्यवसाय कर सकते हैं जहाँ विशुद्ध खोवा,घृत,छेना-पनीर, नवनीत, दही,मही का निर्माण इकाई के रूप में किया जा सकता है | खोवे व् छेने से विशुद्ध मिष्ठान तैयार कर उसके भण्डार या शोरूम खोले जा सकते हैं शुष्क गौमय के चूर्णकर उसकी धूप अगरबत्ती आदि पूजन सामग्री की लघु इकाई भी स्थापित की जा सकती है | हाँ खेतों के किनारे किनारे हम फलदार वृक्ष लगाना न भूलें ये रसीले फल प्रदान करने के साथ साथ आपके खेतों की मिटटी के कटाव की रोकथाम करते है | तो देखा साथियों इस प्रकार हम आम के साथ उनकी गुठलियों के दाम ही अर्जित नहीं करते प्रत्युत उनके छिलकों को भी सोना बना सकते हैं आवश्यकता है तो थोड़ी लगन और थोड़े परिश्रम की…..

organic fruits vegetables

आर्गेनिक फल व सब्जियाँ, आर्गेनिक खेती क्या होती हैं?

ऑर्गेनिक फल और सब्जियाँ सामान्य फल सब्जियों से अधिक लाभदायक होते हैं क्यूंकि ऑर्गैनिक फूड्स में आमतौर पर जहरीले तत्व नहीं होते क्योंकि इनमें केमिकल्स, पेस्टिसाइड्स, ड्रग्स, प्रिजर्वेटिव जैसी नुकसान पहुंचाने वाली चीजों का इस्तेमाल नहीं किया जाता फ्री होते हैं ।

जैविक खेती (Organic Farming) में किसानों को कम लागत में उत्तम गुणवत्ता की फसल प्राप्त होती है| हमारे भारत की खेती ज्यादातर मानसून पर आधारित है, अगर मानसून अच्छी हुई तो फसल भी अच्छी होती है| जैविक खेती (Organic Farming) उन दोनों परिस्थितियों सिंचित और असिंचित क्षेत्र के लिए फायदे का सौदा है| इसलिए युवा किसान इस पद्धति में बढ़ चढ़ कर हिस्सा ले रहें है| आइए जानने की कोशिश करते है की जैविक खेती (Organic Farming) क्या है, इसके फायदे क्या है और जैविक खेती कैसे करते है|

जैविक खेती क्या है (What is Organic Farming)

यह एक प्राचीन कृषि पद्धति है, जो भूमि के प्राकृतिक स्वरूप को बनाए रखती है, पर्यावरण की शुद्धता को बनाए रखती है, मिट्टी की जल धारण क्षमता को बढ़ाती है, इसमें रसायनों का प्रयोग कम होता है और कम लागत में गुणवत्तापूर्ण पैदावार होती है| जैविक खेती (Organic Farming) में रासायनिक उर्वरको, रासायनिक कीटनाशकों तथा खरपतवारनाशकों की बजाय गोबर की खाद, कम्पोस्ट खाद, हरी खाद, वैक्टीरिया कल्चर, जैविक खाद और जैविक कीटनाशकों इत्यादि से खेती की जाती है|

अन्तराष्ट्रीय वैज्ञानिकों का कहना है की मिट्टी में असंख्य जीव रहते है, जो एक दुसरे के पूरक तो होते ही है साथ ही पौधों के विकास के लिए पोषक तत्व भी उपलब्ध करवाते है| जैविक खेती (Organic Farming) का मूल उदेश्य तेजी से बढ़ती जनसंख्या को मद्देनजर रखते हुए मृदा संरक्षण की प्रक्रियाएं अपनाते हुए जैविक तरीकों से किट व रोग पर नियन्त्रण रखते हुए फसलों का उत्पादन को बढ़ाना है| ताकि लोगों को स्वस्थ कृषि उत्पाद उपलब्ध हो सकें और साथ ही कृषि प्रक्रियाओं में पर्यावरण और प्राकृतिक संसाधनों की कम से कम क्षति हो|

क्यों आवश्यक है जैविक खेती

1. पिछले कई वर्षो से हम देखते आ रहे है की रसायनों और कीटनाशकों से खेती में लगातार नुकसान हो रहा है, लागत बढ़ रही है, भूमि अपना प्राकृतिक स्वरूप खोती जा रही है और पर्यावरण प्रदुषण और मनुष्य के स्वास्थ्य में किस हद तक गिरावट आई है आप देख सकते है| किसान अनुभव कर सकता है की वो अपनी पैदावार का बहुत सा हिस्सा उर्वरक और कीटनाशकों में लगा देता है यदि किसान को चाहिए की वो खेती में अधिक मुनाफा ले तो किसान को जैविक खेती की तरफ जाना ही होगा|

2. खेती के दायरे में वे खाने पीने की चीजे आती है इन खाद्य पदार्थो में जिंक और आयरन जैसे खनिज तत्व बड़ी मात्रा में मौजूद होते है ये सेहत के लिए काफी उपयोगी होते है| रासायनिक खाद और कीटनाशकों के धड़ल्ले से इस्तेमाल न केवल जमीन के लिए हानिकारक है, बल्कि इनसे तैयार कृषि उत्पाद इंसानों और पशुओं की सेहत पर भी बुरा असर डालते है|

जैविक खेती के फायदे

1. इस से ना केवल भूमि की उर्वरक शक्ति बनी रहती है बल्कि उसमें वृद्धि भी होती है|

2. इस पद्धति से पर्यावरण प्रदूषण रहित होता है|

3. इसमें कम पानी की आवश्यकता होती है जैव खेती पानी का संरक्ष्ण करती है|

4. इस खेती से भूमि की गुणवत्ता बनी रहती है या सुधार होता रहता है|

5. यह किसान के पशुधन के लिए भी बहुत महत्व रखती है और अन्य जीवों के लिए भी|

6. फसल अवशेषों को नष्ट करने की आवश्यकता नही होती है|

7. उत्तम गुणवत्ता की पैदावार का होना|

8. आप देखेगें की जविक खेती (Organic Farming) की वजह से स्वास्थ्य में सुधार होगा|

9. कृषि में सहायक जीव न केवल सुरक्षित होंगे बल्कि उनमें बढ़ोतरी भी होगी|

10. इसमें कम लागत आती है और मुनाफा ज्यादा होता है|

भारत में जैविक खेती

1. एक अनुमान के मुताबिक दुनिया भर में साढ़े तीन करोड़ हेक्टेयर कृषि भूमि पर करीब 14 लाख उत्पादक जैविक खेती कर रहें है| कृषि भूमि का करीब दो तिहाई हिस्सा घास वाली भूमि है| फसल का क्षेत्र करीब 82 लाख हेक्टेयर है जो कुल जैविक कृषि भूमि का एक चौथाई है|

2. भारत में 2003-04 से इसको लेकर गम्भीरता दिखाई गई और 42,000 हेक्टेयर क्षेत्र से जैविक खेती की शुरुवात हुई| मार्च 2010 तक यह बढ़ कर करीब 11 लाख हेक्टेयर हो गया| अब तक इसमें बहुत इजाफा हुआ है| भारत आज जैविक खेती से बने उत्पादों का निर्यात कर रहा है|

किसान मांग के अनुसार बदले

1. विश्व या भारतीय बाजार में बढती जैव खेती के उत्पादों की मांग से प्रतीत होता है की जैविक खेती के रूप में किसानो का भविष्य उज्ज्वल है| लेकिन इसके लिए किसानों को लिक से हटकर काम करना होगा जैविक खेती (Organic Farming) के शुरुआत में उत्पादन में कुछ गिरावट और खेती में उत्पादन को पटरी पर आने में कुछ समय लग सकता है| किसानों को इसके लिए अपने आप को मानसिक रूप से तैयार करना होगा| जैविक खेती के लिए किसान को चाहिए की वो फसल को अदल बदल कर उगाएं|

2. किसान चाहे तो शुरुआत में अपने परिवार के लिए जैविक फसल उगा सकते है| बाद में वे इसे बड़ा आकार या व्यावसायिक रूप दे सकते है| इसके जरीय शुरु में गेहू, धान और चना की खेती की जा सकती है| इसकी सबसे बड़ी शर्त होती है की आप रासायनिक दवा या खाद का बिलकुल भी प्रयोग नही कर सकते इनकी जगह आप जैविक खाद या दवा का उपयोग कर सकते है|

जैविक खाद कैसे तैयार करे

भारत में पहले से ही गोबर की खाद, कम्पोस्ट, हरी खाद और जैविक खाद का प्रयोग विभिन्न फसलों का उत्पादन बढ़ाने के लिए किया जाता रहा है| जैविक खाद बनाने के लिए पौधों के अवशेष, गोबर और जानवरों का बचा हुआ चारा आदि सभी वस्तुओं का प्रयोग करना चाहिए| जैविक खाद बनाने के लिए 10 फुट लम्बा, 4 फुट चौड़ा और 3 फुट गहरा गड्ढा करना चाहिए| सभी जैविक पदार्थो को मिलाकर गड्ढे में भरना चाहिए और उपयुक्त पानी डाल देना चाहिए| गड्ढे में पदार्थो को 30 दिन बाद अच्छी तरह पलटना चाहिए और उचित मात्रा में नमी रखनी चाहिए| यदि नमी कम हो तो पलटते समय पानी डाला जा सकता है| पलटने की क्रिया से जैविक पदार्थ जल्दी सड़ते है, और खाद में पोषक तत्वों की मात्रा बढ़ती है| इस तरह तीन महीनें में जैविक खाद बन कर तैयार हो जाती है|

तो उपरोक्त बातों से समझ गये होंगे की जैविक खेती से कितना फायदा है और आज के समय में परंपरागत खेती के कितने नुकसान है | किसान भाइयों को जैविक खेती की तरफ बढ़ना चाहिए जहां स्वास्थ्य है पर्यावरण संतुलन है| हाँ शुरु के 2 से 3 साल तक पैदावार का स्तर गिर सकता है लेकिन यह धीरे धीरे बढ़ जाएगा, और जैविक खेती (Organic Farming) के लिए सरकार भी प्रयासरत है बहुत योजनाएं चला रखी है जैविक खेती को बढ़ावा देने के लिए जिसका लाभ आप उठा सकते है|

जैविक खेती क्या है और इसके फायदे क्या हैं?

सबसे पहले ये जानना चाहिए कि जैविक खेती क्या है. दरअसल, यह खेती की वो पद्धति है जिसमें पर्यावरण के प्राकृतिक संतुलन को कायम रखते हुए भूमि, जल एवं वायु को प्रदूषित किये बिना दीर्घकालीन व स्थिर उत्पादन प्राप्त किया जाता है. इस पद्धति में रसायनों का उपयोग कम से कम होता है|

जैविक खेती के फायदे

जैविक खेती रसायनिक कृषि की अपेक्षा सस्ती, स्वावलम्बी एवं स्थाई है. इसमें मिट्टी को एक जीवित माध्यम माना गया है. भूमि का आहार जीवांश होता है. जीवांश गोबर, पौधों व जीवों के अवशेष आदि को खाद के रूप में भूमि को प्राप्त होते हैं. जीवांश खादों के प्रयोग से पौधों के समस्त पोषक तत्व प्राप्त हो जाते हैं. साथ ही इनके प्रयोग से उगाई गयी फसलों पर बीमारियों एवं कीटों का प्रकोप बहुत कम होता है, जिससे हानिकारण रसायन, कीटनाशकों के छिड़काव की आवश्यकता नहीं रह जाती है.

इसका परिणाम यह होता है कि फसलें पूर्ण रूप से रसायन मुक्त और स्वस्थ होती हैं. जीवांश खाद के प्रयोग से उत्पादित खाद्य पदार्थ अधिक स्वादिष्ट, पोषक-तत्वों से भरपूर एवं रसायनों से मुक्त होते हैं.

जैविक खेती के लिए जीवांश जैसे गोबर की खाद (नैडप विधि), वर्मी कम्पोस्ट, जैव उर्वरक एवं हरी खाद का प्रयोग भूमि में किया जाना आवश्यक है|