‘आम के आम और गुठलियों के दाम’ अर्थात उत्पाद के साथ साथ उसके अवशिष्ट से भी लाभ अर्जित करना | शास्त्रों में कृषि कर्म को संसार की सबसे उत्तम आजीविका कहा गया है | कृषि कर्म में उपज से आय तो होती ही होती है साथ ही इसके अवशिष्ट से भी लाभार्जन किया जा सकता है | कृषोपज का अवशिष्ट गौमाता का भोजन है यदि कृषि हमारी आजीविका है तब हमें गौपालन अवश्य करना चाहिए | गौ माता आय का एक बहुआयामी साधन है इससे हमें अमृत तुल्य गौरस, खेतों की पोषणकारी उर्वरा, ईंधन के रूप जैविक गैस और गौमूत्र के रूप कीटनाशक व् रामबाण औषधि प्राप्त होती हैं | आजकल शुद्धता की अत्यधिक मांग हो चली है लोग इसके मुंहमांगे दाम देने को तैयार हैं हम दुग्ध से दुग्धडेयरी का अतिरिक्त व्यवसाय कर सकते हैं जहाँ विशुद्ध खोवा,घृत,छेना-पनीर, नवनीत, दही,मही का निर्माण इकाई के रूप में किया जा सकता है | खोवे व् छेने से विशुद्ध मिष्ठान तैयार कर उसके भण्डार या शोरूम खोले जा सकते हैं शुष्क गौमय के चूर्णकर उसकी धूप अगरबत्ती आदि पूजन सामग्री की लघु इकाई भी स्थापित की जा सकती है | हाँ खेतों के किनारे किनारे हम फलदार वृक्ष लगाना न भूलें ये रसीले फल प्रदान करने के साथ साथ आपके खेतों की मिटटी के कटाव की रोकथाम करते है | तो देखा साथियों इस प्रकार हम आम के साथ उनकी गुठलियों के दाम ही अर्जित नहीं करते प्रत्युत उनके छिलकों को भी सोना बना सकते हैं आवश्यकता है तो थोड़ी लगन और थोड़े परिश्रम की…..
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