दिल से ़़़़़
क्या आप जानते है पौधो को नाईट्रोजन कैसे मिलती है?
यह तो हम जानते है कि पत्तों को प्रोटीन की निर्मिति हेतु ऩाईट्रोजन की आवशयकता होती है। पत्तों के इर्द गिर्द हवा में 78.6 प्रतिशत नाईट्रोजन होती है । हवा में नाईट्रोजन का महासागर है किन्तु ईश्वर ने पत्तो को हवा से नाईट्रोजन लेने की छमता नहीं दी है। ईश्वर ने यह छमता एक सुक्छम जीवाणु को दी है जिसको हम नाईट्रोजन उपलब्ध करवाने वाला जीवाणु (Nitrogen fixing bacteria) कहते है। जिसका हमने संक्छिप्त नाम नत्राणु रखा है ।
ये नत्राणु दो प्रकार के होते है:-
1. सहजीवी ( Symboitic)
2. असहजीवी ( Non Symboitic)
1.सहजीवी नत्राणु भी तीन प्रकार के होते है:-
क. रायझोबियम नत्राणु ( Rhyzobium)
ख. माइकोराजा फफूंद
ग. नील हरित शैवाल
ये सहजीवी नत्राणु फलीवर्गीय द्वि दलीय फसलों के पेड़ पौधो की जड़ो पर जो गाठें होती है, उनमें निवास करते है । इसमें सारे दलहन आते है जिनकी संख्या 568 है। इन गांठों में रायझोबियम सहजीवी नत्राणु निवास करते है । जब पत्तों में प्रोटीन निर्मिति के लिये नाईट्रोजन की आवशयकता होती है तो जड़ें गांठों में निवासी रायझोबियम के माध्यम से हवा से नाईट्रोजन लेती है तथा इसके बदले में जड़े रायझोबियम जीवाणुओं को शर्करा देती है।इसे सहजीवन कहते है, इसका मतलब है अगर हवा से नाईट्रोजन लेना है और जड़ो को उपलब्ध करना है तो हमें दलहन की अन्तर फसल लेनी होगी।
2. असहजीवी नत्राणु
ऑझोटोबॉक्टर ( Azotobacter), ऑझोस्पीरीलम ( Azospirrilium), बायजेरींकिया ( Biejerinkia), फ्रेन्किया ( Frankia), सुडोमोनास( Pseudomonas) आदि कुल 136 प्रकार के असहजीवी नत्राणु है ।
ये जीवाणु जड़ो के पास तो बैठे रहते है किन्तु जड़े के ऊपर नहीं। ईश्वर ने इन्हे कार्य सौंपा है कि हवा से नाईट्रोजन लेकर जड़ें को दो लेकिन जड़ो से कुछ मत मांगो। जड़ो द्वारा नाईट्रोजन मांगने पर ये हवा से नाईट्रोजन तो लेते है किन्तु जड़े के हाथ में न देकर उसके सामने पटक देते है इसी लिये इन्हे असहजीवी नत्राणु कहते है ।
असहजीवी नत्राणु एक दलीय पौधे की जड़ो के पास होते है जबकि सहजीवी नत्राणु द्विदलीय पौधों की जड़ो में होते है । अत: यदि दोनों एक साथ है तभी पौधे जड़ो से नाईट्रोजन ले सकते है अन्यथा नहीं।
अत: यदि हमें यूरिया बंद करनी है तो यदि मुख्य फसल एक दलीय है तो अन्तर फसल द्विदलीय लेनी होगी तथा यदि मुख्य फसल द्विदलीय है तो अन्तर फसल एक दलीय लेनी होगी ।
इस पर विस्तार से चर्चा करेंगे हम आगामी कार्यशाला में।